अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Sunday, November 20, 2016

अपना उधार ले जाना! (नज़्म) - मोहित शर्मा ज़हन


अपना उधार ले जाना!

तेरी औकात पूछने वालो का जहां, 
सीरत पर ज़ीनत रखने वाले रहते जहाँ, 
अव्वल खूबसूरत होना तेरा गुनाह, 
उसपर पंखो को फड़फड़ाना क्यों चुना?
अबकी आकर अपना उधार ले जाना!

पत्थर को पिघलाती ज़ख्मी आहें,
आँचल में बच्चो को सहलाती बाहें,
तेरे दामन के दाग का हिसाब माँगती वो चलती-फिरती लाशें। 
किस हक़ से देखा उन्होंने कि चल रही हैं तेरी साँसे?
तसल्ली से उन सबको खरी-खोटी सुना आना,
अबकी आकर अपना उधार ले जाना!
माँ-पापा के मन को कुरेदती उसकी यादें धुँधली,
देखो कितनो पर कर्ज़ा छोड़ गई पगली।
ये सब तो ऐसे ही एहसानफरामोश रहेंगे,
पीठ पीछे-मिट्टी ऊपर बातें कहेंगे,
तेरी सादगी को बेवकूफी बताकर हँसेंगे,
बूढे होकर बोर ज़िन्दगी मरेंगे।
इनके कहे पर मत जाना,
अपनी दुनिया में खोई दुनिया को माफ़ कर देना,
अबकी आकर अपना उधार ले जाना!

ख्वाबों ने कितना सिखाया, 
और मौके पर आँखें ज़ुबां बन गयीं...
रात दीदार में बही,
हाय! कुछ बोलने चली तो सहरिश रह गई...
अब ख्वाब पूछते हैं....जिनको निकले अरसा हुआ,
उनकी राह तकती तू किस दौर में अटकी रह गई....
कितना सामान काम का नहीं कबसे,
उन यादों से चिपका जो दिल के पास हैं सबसे,
पुराने ठिकाने पर ...ज़िन्दगी से चुरा कर कुछ दिन रखे होंगे,
दोबारा उन्हें चैन से जी लेना...
इस बार अपना जीवन अपने लिए जीना,
अबकी आकर अपना उधार ले जाना!

बेगैरत पति को छोडने पर पड़े थे जिनके ताने, 
अखबारों में शहादत पढ़, 
लगे बेशर्म तेरे किस्से गाने। 
ज़रा से कंधो पर साढ़े तीन सौ लोग लाद लाई,
हम तेरे लायक नहीं,
फिर क्यों यहाँ पर आई?
जैसे कुछ लम्हो के लिए सारे मज़हब मिला दिए तूने,
किसी का बड़ा कर्म होगा जो फ़रिश्ते दुआ लगे सुनने.... 
छूटे सावन की मल्हार पूरी कर आना,
....और हाँ नीरजा! अबकी आकर अपना उधार ले जाना!

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*नीरजा भनोट को नज़्म से श्रद्धांजलि*, कल प्रकाशित हुई ट्रिब्यूट कॉमिक "इंसानी परी" में यह नज़्म शामिल है।

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