अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Saturday, July 16, 2016

परिवार बहुजन (कहानी)


एक छोटे कस्बे की आबाद कॉलोनी में औरतों की मंडली बातों में मग्न थी। 
"बताओ आंगनबाड़ी की दीदी जी, बच्चों के स्कूल की टीचर लोग हम बाइस-पच्चीस साल वाली औरतों को समझाती फिरती हैं कि आज के समय में एक-दो बच्चे बहुत हैं और यहाँ 48 साल की मुनिया काकी पेट फुलाए घूम रहीं हैं। घोर कलियुग है!"

"मैं तो सुने रही के 45 तक जन सकत हैं औरत लोग?"

"नहीं कुछ औरतों में रजोनिवृत्ति जल्दी हो जाती है और कुछ में 4-5 साल लग जाते हैं। फिर भी, क्या ज़रुरत थी काका-काकी को इस उम्र में यह सब सोचने की?"

यह बात सुनकर पास से गुज़रती उस दम्पति की पडोसी बोली। 

"अरे! उन कुछ बेचारों की तरफ से भी सोच कर देखो। आज इस कॉलोनी में कितने बूढ़े जोड़ों के साथ उनके बच्चे रहते हैं? इनके भी दोनों बच्चे बाहर हैं जो तीज-त्योहारों पर खानापूर्ति को आते हैं। अब इनकी बाकी उम्र होने वाले शिशु को पाल-पोस कर काबिल बनाने में कट ही जायेगी। घर में पैसे की तंगी नहीं है तो इनमे से किसी एक को या दोनों को कुछ होता भी है तो बच्चे का काम चल जाएगा।"

बात फैली और आस-पास के इलाके के आर्थिक रूप से ठीक दम्पति  प्राकृतिक या टेस्ट ट्यूब विधि से उम्र के इस पड़ाव में संतान करने लगे। पैसों और संपत्ति के लालच में कई बच्चे माँ-बाप का अधिक ध्यान रखने लगे कि कहीं उनके अभिभावक दुनिया में उनके छोटे भाई-बहन न ले आएं। 
समाप्त!
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मोहित शर्मा ज़हन

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