अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Tuesday, May 3, 2016

साक्षात्कार - लेखक मिथिलेश गुप्ता

लेखक मिथिलेश गुप्ता के साथ उनके हाल ही में प्रकाशित उपन्यास "जस्ट लाइक दैट" को लेकर कुछ बातें हुयी, जो यहाँ आप लोगो के साथ साझा कर रहा हूँ। यह मिथिलेश जी का दूसरा साक्षात्कार है, इस से पहले "बांकेलाल और क्रूकबांड" शार्ट फिल्म रिलीज़ होने पर उनसे बातें की थी। 

*) - अपने जीवन के अब तक के सफर के बारे में बताएं।
मिथिलेश - जीवन यानी की लाइफ, कुछ खास नहीं वही एक ऐसा आम बच्चा जो कॉमिक्स के बीच पला बढ़ा ,घरवाओ से डांट सुनना और फिर भी जिद्द से कॉमिक्स पढ़ते ही जाना, स्कूल की किताबों के अंदर छुपा के कॉमिक्स पढना,, और फिर खुद की एक कॉमिक्स लाइब्रेरी बनाया और कॉमिक्स जमा करने के साथ-साथ कहानिया लिखना स्टार्ट किया , शायद तब मैं सातवी में था जब लेखनी मुझमे उभरी थी और कॉलेज आने तक 200 के आस पास शोर्ट कहानिया और १५ नोवल्स लिख चुका था और शायद आज उसी का फल ये है की मेरी कोई किताब आप लोगो के समक्ष आ पायी. शायद तब घर वालो और दोस्तों को अजीब भी लगता था की मैं बाहर की दुनिया से ज्यादा किताबों और कॉमिक्स में लगा रहता हूँ पर वो मेरे अन्दर था जो अब शायद अब आप लोग देख पायेंगे. कहते हैं ना सब कुछ एकदम से नहीं आ जाता. 


 *) - "एक भयानक रात" किताब पर कैसा रिस्पांस मिला आपको? 
मिथिलेश - सूरज पॉकेट बुक्स के सम्पादक ‘शुभानन्द’ सर ने जब मेरी कहानिया फेसबुक में देख कर मुझे अपने पब्लिकेशन में लिखने का इनविटेशन दिया था वो मेरी जीवन का सबसे ख़ुशी का ऐसा दिन था जब मुझे बचपन से लिखी उन सारी कहानियो को लोगो के सामने लाने के लिए एक प्लेटफार्म मिल गया था. वो भयानक रात मैंने अपनी एक शोर्ट फिल्म के लिए लिखा था और सूरज पॉकेट बुक्स के लिए मैं अपने एक ऐसे नावेल पर काम कर रहा था जो शायद अब भी पूरी होना बाकी है , वो भयानक रात को जब शुभानन्द सर को भेजा तो उन्होने कहा ये नावेल के रूप में आना चाहिए और ebooks में प्रकाशित होगी तो लोग जरुर पसंद करेंगे , चूँकि कहानी ३० पन्नो की थी . पर मैं ebooks में प्रकाशन के लिए तैयार नही था. पर जब वो ebooks में रिलीज़ हुयी तो जिस आंकड़ो से वो किताबो लोगो ने डाउनलोड किया मैं हैरान रह गया. और मुझे अपने आप पर थोडा कॉन्फिडेंस भी आ गया लोगो का रिस्पांस देख कर. और ये सब हो पाया शुभानन्द सर जी की वजह से उनका विश्वास मेरी लेखनी पर. जिसने मुझे आज ३० पन्नो से २१० पन्नो की नावेल लिखने की हिम्मत दिया है .

*) - जस्ट लाइक देट किताब को लिखने का कीड़ा मन में कब और कैसे कुलबुलाया? 
मिथिलेश - कीड़ा तो बचपन से ही था. जैसा मैंने कहा मैं अपने एक ड्रीम नावेल को लिखने में बिजी था और अचानक से वो भयानक रात जो शोर्ट फिल्म के लिए लिखा था ebooks में आने वाली थी. बात ये थी कि मैं अपने उस ड्रीम नावेल के क्लाइमेक्स को ख़तम नही कर पाया था उसी बीच मुझे लव स्टोरी लिखने का ख्याल दिमाग में घूम रहा था बस एक दिन शुभानन्द सर से इसका ज़िक्र किया तो वो बोले अपनी उस नावेल को ख़तम करो जो २०१३ से लिख रहे हो मैंने कहा उसका क्लाइमेक्स १० बार लिख चूका हूँ पर अच्छा नहीं बन पा रहा. मैं कुछ और लिख रहा हूँ . वो बोले ,, अब क्या ? “जस्ट लाइक दैट’ का ज़िक्र जब उनको किया तो वो कांसेप्ट का पूछने लगे और मैंने कोई प्लाट ना होने के बाद भी उस रात भर में उसका एक प्लाट बनाके उनको भेज दिया जो उनको पसंद आ गया. और फिर प्यार की किताब ‘जस्ट लाइक दैट’ जिसे मैंने अपने दोस्तों ,अपनी और अपने आसपास के युवाओ की लाइफ में हो रही प्यार की घटनाओं से लेकर लिखा है. वो कीड़ा सोते समय जागते समय और यहाँ तक की भागते समय भी कुलबुलाये जा रहा था और रात रात कई महीनो सोया नही. ऑफिस से आने के बाद भी वो लिखना जारी होता था और बस ८ से १० महीनो में जस्ट लाइक दैट तैयार हो गयी.

*) - लिखने के अलावा और क्या शौक हैं आपके? 
मिथिलेश - फिल्मे देखना, कॉमिक्स पढना, डासिंग , सिंगिंग ,और छोटी मोटी एक्टिंग और मिमक्री करना. जिसमें से कुछ के  examples youtube पर आप देख ही चुके हैं. 

*) - लेखन किस तरह डांस और एक्टिंग से अलग है? 
मिथिलेश - डांस करते समय physically काफी मेहनत करनी होती है जिसे आप जब तक पुरी तरह से फील नहीं करते बात नहीं बनती. एक्टिंग तो मैं ‘गोविंदा ‘ फेन हु शायद इसलिए थोडा सिख पाया गोविंदा को बचपन से फॉलो किआ है और जिस तरह से वो मिमक्री और डांस करते हैं और बाते बनाते हैं मैं उसे गौर से सुनते आया हूँ. मुझे अच्छा लगता है जब लोग कहते हैं अच्छी मिमक्री या एक्टिंग किया तुमने, चाहे वो कॉलेज हो या स्कूल या ऑफिस में..लेखन तो ऐसा काम है जिसमे दिमाग और दिल का होना इतना जरुरी है जितना मुझे डांस और एक्टिंग में नहीं देना पड़ता क्यूंकि वहा मैं enjoyment या कहे entertainment के लिए करता हूँ. लेखनी में अगर दिमाग और दिल साथ ना दे तो लिखना संभव नही हो पाता. एक ख़ास बात ये अलग है की आप डांसिंग या एक्टिंग जब मन करे कर सकते हो पर लेखनी मन के हिसाब से नही होती, कि भाई आज कोई काम नहीं चलो लिखता हूँ ,ऐसा नही होता. लेखनी तो किसी भी टाइम रात हो या ट्रेवल या कोई भी जगह दिमाग और दिल दस्तक देते हैं और हाथ लिखना शुरू कर देते हैं क्यूंकि वो फीलिंग बहुत जरुरी है लेखनी में जो आप लोगो को दिखाना चाहते हो.

*) - ऑफिस, घर के सदस्यों और दोस्तों की आपकी क्रिएटिविटी पर क्या राय रहती है? 
मिथिलेश - ऑफिस में जब लोग बॉस के डांट या सैलरी कब आएगी के नाम पर रोते हैं मैं लिखने में बिजी होता हूँ , एक्टिंग और मिमक्री से लोगो को हँसाता हूँ, पता नहीं क्यूँ पर मैं दुखी होने पर भी कभी कभी ignore करके अपने आप में मस्त हो जाता हूँ जो मेरे ऑफिस के दोस्त और घरवाले जानते हैं और कहते हैं तू तो टैलेंटेड है भाई बहुत आगे जाएगा , हा हा हा मैं हँसता हूँ बस. सभी लोग मुझे सपोर्ट करते हैं खासकर घरवाले अब क्यूंकि पहले उनको मेरे एग्जाम की बुक्स और कॉमिक्स के बीच टेंशन होती थी कि मैं किस किताब पर हूँ, हा हा हा. खैर सबका साथ है तभी तो अच्छा लगता है ये सब करना. खासकर मेरी  ‘सिम्मी दीदी’ ने हमेशा इन सब चीजों में आजतक साथ दिया है.

*) - आगामी प्रोजेक्ट्स के बारे में कुछ बताएं? 
मिथिलेश - बताया था ना मेरा ड्रीम नावेल २०१३ से कम्पलीट नही हुआ है. वो debut नावेल होने वाला था २०१४ में अब २०१६ आ गया २ बुक्स भी आ गयी उफ्फ शायद अब नेक्स्ट वही आएगा. “ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ’’ आगामी प्रोजेक्ट का नाम है जो युवाओ के बीच हो रही चीजों को गहराई से  दिखने का प्रयाश है जिसमे लव, इमोशन, दोस्ती, फॅमिली और करियर इन सब चीजों का ऐसा ताल मेल है जो हर युवा के साथ होती है जब वो अपने पहले जोब के लिए हाथ पैर मारने निकलता  है. कभी उन्हें प्यार भी होता है, नए नए दोस्त भी मिलते हैं और फिर कुछ ऐसी घटनाएं भी कभी कभी हो जाती है जो आपकी लाइफ की उस ‘ऑक्सीजन’ को खींचने लगती है जिसके सहारे आपने अपनी लाइफ को जीने का सोचा था. 
यही है ‘ऑक्सीजन ऑफ़ लाइफ’, पूर्वी , पायल और आदित्य की कहानी. मुझे इस नावेल से बहुत उम्मीद है कि लोगो को और भी ज्यादा पसंद आएगी.

*) - लेखन में आपके आदर्श कौन हैं और क्यों? 
मिथिलेश - ‘तरुण कुमार वाही’ सर का मैं जबरजस्त फेन हूँ. राज कॉमिक्स में बांकेलाल ,गमराज और फाइटर toads चरित्रों के लेखक. उनकी लेखनी में जो मजेदार बात है मैं कभी किसी दूसरी कॉमिक्स में देखी ही नहीं. उसके बाद रविंदर सिंह जिनकी शुरुवातो दो नोवेल्स से ही मुझे उन्होने अपनी लेखनी की तरफ आकर्षित कर लिया.  अमेरिकन राइटर Tony Abbot, ‘The secrets of droon’ जैसी फंतासी नावेल के रचयिता. ये मेरी सबसे फेवरेट बुक सीरीज है. और मेरे गुरु ‘शुभानन्द सर ‘ राजन इकबाल रिबोर्न सीरीज और जावेद अमर जॉन सीरीज के रचयिता. इनकी नोवेल्स आप जब पढेंगे तो खुद हिंदी जैसी किताबों से प्यार करने लगेंगे. बस इतना ही कह सकता हूँ इनकी किताबो और इनसे से काफी कुछ सिखा है लेखनी में और आज भी सिख रहा हूँ.

*) - सूरज पॉकेट बुक्स के साथ आपका अनुभव कैसा रहा? 
मिथिलेश - जिस पब्लिकेशन ने मुझे और मेरे लेखन को एक नया आयाम एक नयी दुनिया दी है उनके बारे में क्या कहूं, शुभानन्द सर जिन्होंने २०११ में इस पब्लिकेशन का आरंभ किया था और जब मुझ जैसे नवसिखिये को खुद आगे बढ़के चांस देना और काफी कुछ सिखाना, हर कदम मदद देना, मुझे नहीं लगता शायद कही और से मेरी कहानिया प्रकाशित हो रही होती तो ,मुझे इतना कुछ सिखने को मिल भी पाता. समझिये की सूरज पॉकेट बुक्स मेरी लेखनी और किताबो का एक घर है जहाँ मैं अपने सपने को लिखता हूँ.


*) - आपके लिए काम और अपने पैशन को एकसाथ सम्भालना कितना मुश्किल होता है? 

मिथिलेश - बिना मुश्किल उठाये तो रोज़ सुबह ऑफिस भी जाना मुस्किल है. लोग मुझसे कहते हैं कहा से लाता है भाई तू इतना टाइम. एक साल में दो दो किताबे और 4 शोर्ट फिल्म्स. मैं कहता हूँ टाइम तो सबके पास २४ घंटे ही है लेकिन जब आपको कोई चीज़ करना है तो वो टाइम आप खुद निकाल लेते हो, कई दोस्तों को ये भी कहते सुनता हूँ , मैं ऐसी कहानी लिखूंगा की दुनिया में मेरा इतना नाम और पैसा होगा की लोग देखेंगे ऐसे छोटे मोटे शुरुवात नहीं करना मैं तब लिखूंगा जब लोग मुझे जानते होंगे या जब मेरे पास खूब टाइम होगा. खैर ये उन सबका अपना अपना नजरिया और प्लान है मेरे मानना है. मैं अगर वाकई अपने फेम होने तक और पैसे आने तक इंतज़ार करूँगा तो क्या तब तक ये जो कहानिया पन्नो पर उकेर रहा हूँ लिख भी पाउँगा. रही बात टाइम की तो जब खूब सारा टाइम होता है न मैं तब भी नहीं लिख पाता. बिजी टाइम में ही लिखना हो पाता है. मुश्किल तो मुझे भी होती है टाइम निकालने में, कभि कम सो लेता , कभी कम बहार घूमता हूँ पर लिख लेता हूँ , जब दिल में बात आती है.  खैर पैसे और नाम के लिए लिखने का ख्याल दिमाग में नहीं आता.

*) - "जस्ट लाइक देट" हमें क्यों पढ़नी चाहिए?
मिथिलेश - “Because every love story has a different angel which one is yours??” ‘जस्ट लाइक दैट’ प्यार की एक ऐसी किताब है जो शायद हम जैसे हर इन्सान के रास्ते से गुजरती ही है. नुक्कड़ या गली वाला प्यार हो या फिर कॉलेज वाला प्यार, या फिर लाइफटाइम की कसमे खाकर मरते दम तक साथ निभाने वाला प्यार हो. प्यार सबको होता है और कही न कही, किसी न किसी र्रोज़.  ‘जस्ट लाइक दैट; उन सभी प्यार के रास्तो को दिखाएगी जो आपसे होकर गुजर रही होगी या फिर गुजर चुकी होगी या आने वाली होगी, सिर्फ प्यार में विश्वाश करने वालो की किताब नहीं है, बल्कि प्यार के हर पहलुओ को बताने वाली किताब है ये.
ऐसी ही तीन कहानियो का संगम है ‘जस्ट लाइक दैट’ नुक्कड़ वाला लव , कॉलेज वाला लव और लाइफटाइम वाला लव , दोस्ती प्यार ज़ज्ज्बतों और फरेब की दास्ताँ . क्यूंकि प्यार कभी भी कही भी हो सकता है ...जस्ट लाइक दैट 

 *) - पाठको को क्या संदेश देना चाहेंगे?
मिथिलेश - प्यार के defination को ढूंढने से अच्छा है इस एक वर्ड को इतने अच्छे से निभा लो कि प्यार वाकई प्यार बन कर रहे कोई इस पर ऊँगली ना उठाये. प्यार सिर्फ प्यार करने के लिए कभी नहीं होता बल्कि प्यार का मतलबी है साथ निभाना. अगर वही आप नही कर पाए तो आपने प्यार कभी किया ही नहीं है.??

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(मोहित शर्मा ज़हन)

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