अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Thursday, April 2, 2015

जीवनशैली में संतुलन - लेखक मोहित शर्मा (ज़हन)

Mohit Trendster @ Lucknow, 2010

पर्यटन के स्वरुप में बड़े बदलाव आयें है। सदियों तक जो पर्यटन स्थल दुनियाभर में मशहूर थे, जिन्हे सिर्फ देखना लाखो-करोडो की दिली ख्वाइश होती थी....अब वहाँ जाने वाले नयी पीढ़ी के बहुत से लोग उन्हें बोरिंग बताते है, वहाँ घूम कर आने के बाद वो सवाल करते है कि आखिर क्या ख़ास है इन जगहों में? इतना हव्वा किस बात का बनाया जाता है इनपर? कारण जानने से पहले इस बात पर ध्यान दें कि हम लोग ट्रांज़िशन दौर का हिस्सा रहे जिसमे तकनीक बड़ी तेज़ी से बदली, और हमे समाज के दोनों छोर देखने-जीने को मिले। अब आप कहेंगे की बदलाव तो हर पीढ़ी देखती है, तो इस दौर से जुडी पीढ़ियों पर यह टिप्पणी क्यों? सोचिये आप सन 1828 में जी रहे है और एकदम से आपको 1850 में भेजा जाए तो आपको  बदली बातें, चीज़ें समझने में अधिक कठिनाई नहीं आयेगी पर यह कठिनाई 1970 से सीधे 1990 जाने पर बढ़ेगी और 1992 से अगर कोई 2015 में आयेगा उसको आजकल की दिनचर्या में कई बदलाव दिखेंगे जिनकी उसे आदत नहीं होगी। 

इस बदलाव के बाद हम जैसे मनोरंजन और जानकारी के अनेको मल्टीमीडिया साधनो से घिर गये। ग्राफिक्स, एनीमेशन, विडीयोज़ में दुनिया का क्या से क्या खंगाल डाला, जिस वजह से किसी चीज़ का क्रेज़ क्या होता है यह लगभग भूल गए। अनुभवों के लिए सिर्फ डिजिटल साधनो पर निर्भर हो चुके है और इनके इतर दुनिया जो भी है उस से कटने लगे। शायद जो लोग ऐतिहासिक इमारतों, जगहों को बोरिंग बता रहे थे वो उस जगह को देखने, उसकी कहानी जानने के अलावा यह भी अपेक्षा रख रहे थे कि वो ईमारत ब्रेक डांस करेगी, टूट कर फिर अपने आप बन जायेगी, या टूरिस्ट गाइड की जगह खुद अपना इतिहास बताएगी। 

अब बच्चे-युवा और बड़े भी जो शहरी जीवन के आदि हो चुके है उन्हें 2 दिन गाँव में बिताने भारी पड़ जाते है और बातों से ज़्यादा हम मोबाइल टेक्स्ट्स, मैसेजेस से वार्तालाप करते है। इस लेख से मैं आपको वर्तमान तौर-तरीके छोड़ कर वापस इतिहास में जाने की सलाह नहीं दे रहा, बस एक संतुलन बनाने की बात बता रहा हूँ। कुछ समय स्वयं को, अपनों को और प्रकृति को दें - डिजिटल प्रारूपों में औरों से अनुभव लेने के साथ-साथ ज़िन्दगी में खुद अपने अनुभव बटोरें। एक जीवनशैली की अधिकता से स्वयं को एक मशीन में ना बदलने दें। बैलेंस बनाना मुश्किल ज़रूर है पर ज़माना कितना भी आगे बढ़ जाये कई मूलभूत बातें जस की तस रहती है, बस उन्ही के सिरे पकड़ते हुए शुरुआत करें।  

- मोहित शर्मा (ज़हन)
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