अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Wednesday, February 25, 2015

भारतीय सेना हमारा गौरव - मोहित शर्मा (ज़हन)


कुछ लोगो अनुसार शांतिकाल (जब देश किसी युद्ध में ना हो) में भारतीय सेना, नौसेना, वायुसेना के सैनिको, अफसरों को ज़रुरत से अधिक पैसे दिए जाते है। यह बात सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ कि कोई कैसे इतनी सरलता से ऐसे मुद्दे पर ये राय रख सकता है। हाँ, यह मान सकता हूँ कि रक्षा बजट के अंतर्गत विदेशी युद्धक विमानों, हथियारों, पोतों की खरीददारी पर सरकार को समझदारी दिखानी चाहिए, क्योकि पहले ऐसे मामलो में घोटाले और अनियमिततायें देखने को मिली है पर सैनिक का वेतन ज़्यादा क्यों है ये कैसा सवाल है? यह कोई बिजली का बटन नहीं की युद्ध हुआ तो तुरंत रेडी नहीं तो रहने दो। भारत के बाहर और अंदर का माहौल ऐसा है की सेना का स्विच हर समय ऑन रखना मजबूरी है। नहीं तो देश के बाहर बैठे भूखे जानवर या देश के अंदर पनप रहे कुकुरमुत्ते निगल जायेंगे कुछ ही समय में भारत को। खैर, सेना के बारे में कुछ जानकारी मिली मुझे मेरे रिश्तेदारों से जो विभिन्न पदो पर देश सेवा कर रहे है। उसमे से थोड़ी यहाँ आपके साथ साझा कर रहा हूँ। 

8 - 10 वर्ष पूर्व यूरोप और अमरीका के चुने हुए युवा सैनिकों की कुछ टुकड़ियां भारत आयी। उन्हें नेशनल डिफेंस एकेडेमी के कैडेट्स के साथ कुछ हफ्ते ट्रेनिंग करनी थी। पर 3-4 दिनों में ही उनकी बैंड बज गयी और उन्होंने ट्रैनिंग को बर्बर, अमानवीय आदि भारी विशेषण देकर बीच में ही ट्रैनिंग छोड़ दी। समय-समय पर आते अंतर्राष्ट्रीय डेलीगेट्स, अनुसंधानकर्ताओं का भी यही मानना है की भारतीय फ़ौज (थल, जल, वायु) के विभिन्न प्रशिक्षण प्रोग्राम्स दुनिया में कठिनतम ट्रैनिंग्स मे है। शायद यही कारण है जो दशको नाकारा सरकारों के होते हुए भी अब तक ऐसे कुछ राज्य भारत में है जो आसानी से चीन और  उन्नीसों साठ-सत्तर के दौरान अमेरिका समर्थित पाकिस्तान के पास जा सकते थे। 

दुर्गम क्षेत्रो में डटे रहने के साथ-साथ अक्सर आपात स्थितियों, प्राकृतिक विपदाओं में राहत कार्य के लिए सबसे पहले सरकार सेना कि ओर रुख करती है। भारतीय सेना के अनुशासन की मिसालें दी जाती है क्योकि आज़ाद होने के बाद भारत के इतिहास में ऐसे कुछ मौके आये जब सरकार अस्थिर थी और बाहरी ताकतें तख्तापलट की उम्मीदें लगायें बैठी थी सेना से, पर ऐसे सभी नाज़ुक मौको पर सेना ने ना सिर्फ धैर्य बनाये रखा बल्कि स्थिति को सामान्य करने में तत्कालीन सरकारों की मदद की। 

तो अगली बार कोई सैनिक-अफसर मिले तो उसे धन्यवाद करना ना भूलें। जय हिन्द!

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