अंतरजाल की दुनिया और जीवन में मोहित शर्मा 'ज़हन' के बिखरे रत्नों में से कुछ...

Tuesday, August 26, 2014

क्रांतिकारी श्री राजीव दीक्षित - Revolutionist Rajiv Dixit


कितनी ही संघर्ष गाथाएँ हम सभी बचपन से सुनते/देखते आ रहे है लेकिन उनसे कहीं अधिक रोचक, सच्ची और कठिन गाथाएँ हमसे दूर ग्लेमर के ढेर में दब जाती है या फिर जान बुझ कर छुपा दी जाती है। एक ऐसी ही गाथा है भारतीय संस्कृति एवम इतिहास के प्रखर प्रवक्ता, आधुनिक युग के आंदोलनकारी, समाजसेवी स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित जी की। 

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से परास्नातक राजीव जी ने कहीं विदेश जाकर या किसी बड़ी कंपनी के भारी पैकेज पर नौकरी करने के बजाये भारतीय जनता को भारतीयता के बारे में जागरूक करने की ठानी। अब सुनने में अजीब लगता है की भला भारतवासी को भारतीय ज्ञान बताने की क्या ज़रुरत? पर अपने जीवनकाल में जो वाख्यान राजीव जी ने दिये और जो ज्ञान बाँटा उसको जानने के बाद यह बात तर्कसंगत लगती है। 

*) - भागीरथी प्रयास:

अपने भाषणो और गतिविधियों की वजह से राजीव जी को जागरूकता फ़ैलाने के अपने अभियान के शुरुआती चरणो में ही मुख्यधारा मीडिया द्वारा ब्लैकलिस्ट कर दिया गया, जो उनके पूरे जीवनकाल जारी रहा और बड़ा दुख होता है लिखते हुए की उनकी मृत्यु के समय भी मीडिया मौन रहा। कारण था राजीव जी का सीधे संस्थानों, लोगो और कंपनियों के नाम लेना अपने भाषणों में जिनके द्वारा ही मुख्यधारा मीडिया की फंडिंग होती है।उन्होंने  अकेले आज़ादी बचाओं आंदोलन को सींच कर एक विशाल रूप दिया। गुजराती, हिंदी के वक्तव्यों-व्याख्यानों के उनके कैसेट्स ने नब्बे के दशक मे धूम मचा दी और मीडिया, सरकारी दलालो को ठेंगा दिखाते हुए अपने दम पर राजीव जी लाखो-करोडो लोगो तक पहुँचने लगे। हालाँकि, कुछ स्थानीय चैनल्स, पत्रिकाओं, समाचार पत्रो ने उन्हें कवर किया पर उनकी संख्या और पहुँच बड़ी कंपनियों एवम सरकार द्वारा वित्त पोषित मीडिया घटको जैसी नहीं थी। 

*) - सम्पूर्ण बलिदान:

राजीव जी देशहित के लिए अपनों को छोड़कर एक सन्यासी सा जीवन जीते थे। अपना निजी जीवन बलिदान कर वो निरंतर जनता को विभिन्न विषयों पर जागरूक करने में लगे रहते थे जो दो दशको से भी कम समय में इतना अधिक काम और हज़ारो रैलियाँ करना दर्शाता भी है। 



*) - विविधता:

सैकड़ों विषयों पर गहन अनुसंधान, आयुर्वेदिक-देसी चिकित्सा के चलते फिर ज्ञान भंडार - इनसाइक्लोपीडिया, आज़ादी बचाओ आंदोलन, भारत स्वाभिमान आंदोलन के अंतर्गत असंख्य काम जिनमे राइट टू इनफार्मेशन, राइट टू रिकॉल, देसी-विदेशी कंपनियों के लाइसेंसिंग-मानको में सरकारी धांधली, विदेशो में काल धन, भारतीय इतिहास से अनेक बार की गयी छेड़छाड़ (ताकि तत्कालीन शासन ठीक से चलते रहे) पर जागरूकता फैलाना प्रमुख रहे। यहाँ सबसे प्रभावित करने वाला उनका काम भारतीय इतिहास में मिथको और सच को अनेकानेक उदाहरणों से समझाना। अब यह वाक्य गंभीर ना लगे पर  ज़रा सोचिये 40-50 वर्षो से जो आम जनता को बरगलाते हुए विभिन्न संचार माध्यमों से बताया जाए जब कोई व्यक्ति उन बातों को नकारे वो भी आकाशवाणी-दूरदर्शन के दौर मे जब बातों, तथ्यों के सत्यापन का कोई तरीका नहीं था तो लोगो की स्वाभाविक प्रतिक्रिया उसका विरोध करना या उसका मज़ाक उड़ाना रही होगी, ऐसे में जब हर कोई आपकी आलोचना करे, आपको गलत बताता रहे तब खुद पर ही संदेह होने लगता है की क्या वाकई में मैं गलत तो नहीं तब सालो तक ऐसी लड़ाई बिना हार माने करोडो में एक्का दुक्का व्यक्ति ही लड़ सकता है। 



*) - अंतिम कुछ वर्ष:

अब राजीव जी की मेहनत रंग ला रही थी। उत्तर भारत बल्कि देश दुनिया में उनकी बातों का हवाला दिया जाने लगा। प्रवासी भारतीय लोगो का एक बड़ा हिस्सा उनका प्रशंषक बन गया। बाबा रामदेव के भारत स्वाभिमान आंदोलन का वो प्रमुख चेहरा बने और उन्हें राष्ट्रीय पदभार मिला। मृत्यु से कुछ महीने पहले वो नियमित रूप से आस्था, संस्कार आदि चैनल पर आने लगे। किसी दिन 1960 की किसी घटना पर सरकारी परदे को हटाते तो किसी दिन किन्ही भूले बिसरे देसी चिकित्सा नुस्खों के बारे में बताते। यहाँ से उनकी ख्याति, बातों, व्याख्यानों को ऊपर ही जाना था क्योकि धीरे-धीरे वो बिना अधिक कवरेज के राष्ट्रीय नाम बन गए थे। जिस तेज़ी से वो सभायें आयोजित कर रहे थे देश के कई हिस्सों में वो अभूतपूर्व था। 2014-2015 तक उनका लक्ष्य पूरा भारत कवर करना था और कुछ हज़ारो सभाओं से और जिस रफ़्तार से वो इस संकल्प को पूरा करने में लगे थे ऐसा आराम से हो जाता। 29 नवंबर को ही उनकी 2 सभाओं का कार्यक्रम था छत्तीसगढ़ में जिनमे से एक बेमेतरा में उन्होंने दी भी। फिर तबियत बिगड़ने पर 30 नवंबर 2010, 43 वर्ष की आयु में उनका आकस्मिक निधन हो गया। सरकारी तंत्र, कार्पोरेट जगत की खामियाँ बताने के अलावा वो समाधान भी बताते थे। शायद उनकी इस मुहीम का राष्ट्रीय रूप लेना कई बड़े लोगो को पसंद नहीं आया इसलिए उनकी मृत्यु पर कई सवाल है। ना उनका पोस्ट मोर्टेम हुआ और अंतिम संस्कार भी मौत के कुछ ही घंटो बाद कर दिया गया जैसे कई सवाल।  

उनकी आलोचना करने वाले कहते है की वो तथ्य बढ़ा-चढ़ा कर बताते थे, हिंदूवादी थे, उनका मानसिक संतुलन ठीक नहीं था। मैं जवाब में कहूँगा की धुनि, मतवाले और पागल में बहुत बड़ा अंतर होता है। किसी संकल्प के लिए निजी बलिदान देना पागलपन नहीं होता, अगर वो भौतिक लालचों के पीछे नहीं थे या आपकी दुनिया अनुसार नहीं थे तो उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया था निष्कर्ष पर आना अतार्किक है। हिंदूवादी होना एक गाली की तरह इस्तेमाल करना बंद करें, या फिर अन्य धर्मो के पक्षधर सभी लोगो के लिए उनके संबोधन वो गाली की तरह बनायें, अपने हिसाब से तराज़ू तोडना-मोड़ना गलत है। जहाँ तक तथ्यों को बढ़ा चढ़ा कर बताने की बात है तो उनका प्रथम उद्देश्य आँखों के सामने होकर भी अदृश्य कर दिए गए मुद्दो पर जनता का ध्यान खींचना जो सफल हुआ, इसमें अगर उन्होंने किसी धांधली को डेढ़-ढाई गुना ज़्यादा भी बता दिया तब भी रही तो वो धांधली ही। सीमित साधनो से इतना करना एक चमत्कारिक उपलब्धि कही जायेगी। और क्या ऐसे तथ्यों से मीडिया, सरकारें, निजी कंपनियाँ सदियों से नहीं खेलती आ रही, यहाँ भी आपने तराज़ू मोड़ दिया? 

चलिए एक बार को आपके सारे तर्क मान भी लिए तो उनकी समाज सेवा, अच्छे काम, Right to Information, Right to Recall, Black Money, Frauds done by Corporates and Government, Social Evils आदि मुद्दो की जागरूकता में उनका योगदान भी याद कीजिये जैसे किसी छात्र की सालाना  रिपोर्ट में अध्यापक सभी बातों, पक्षों का ध्यान रखता है सिर्फ एकतरफा नकारात्मक बातों का नहीं। अक्सर मुझे कई लोगो द्वारा इस विषय पर अपनी सुविधा अनुसार तराज़ू मोड़ना दिखा। 

मेरे लिए स्वर्गीय श्री राजीव दिक्षित एक क्रांतिकारी थे जो आज़ाद भारत देश से ग़ुलामी के घटकों को हटाने की मुहीम में शहीद हुए। अगर वो कुछ वर्ष और जीवित रहते तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत बड़ा नाम बनते शायद इसलिए उन्हें वर्षो के संघर्ष के बाद जब परिणाम मिलने का समय आया तो उनकी मृत्यु 'करवा' दी गयी। जिस देश के लोगो में यह बातें भर दी जायें की आप निकम्मे हो, आपका इतिहास शर्मनाक है, दुनिया से कदम मिलाने की आपकी हैसियत नहीं है, जितना है उसमे खुश रहो उसपर अगर कोई विचलित होता है और मिथक तोड़ने की कोशिश करता है तो यह स्वाभाविक है पर अक्सर भारतीय इस स्वाभाविक प्रतिक्रिया को पागलपन करार दे देते है। आशा है इतिहासकार राजीव जी को वो सम्मान देंगे जिसके वो हक़दार है। 

- मोहित शर्मा (ज़हन)

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